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उपभोक्ता विश्वास बनाए रखने के लिए शहद की ट्रेसेब्लिटी सुनिश्चित करने पर करें कार्य: उद्यान आयुक्त

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नौणी, सोलन — विशेषज्ञों ने इस बात पर बल दिया है कि शहद की ट्रेसेब्लिटी सुनिश्चित करना उसके प्रति उपभोक्ताओं के विश्वास और साख को बनाए रखने के लिए अत्यंत आवश्यक है।

हिमाचल समय, सोलन, 16 अक्टूबर।

नौणी, सोलन — विशेषज्ञों ने इस बात पर बल दिया है कि शहद की ट्रेसेब्लिटी सुनिश्चित करना उसके प्रति उपभोक्ताओं के विश्वास और साख को बनाए रखने के लिए अत्यंत आवश्यक है।

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भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण विभाग में उद्यान आयुक्त और राष्ट्रीय मधुमक्खी पालन एवं शहद मिशन के मिशन निदेशक डॉ. प्रभात कुमार ने राष्ट्रीय मधु बोर्ड (NBB) द्वारा वित्तपोषित नौणी में आयोजित दो दिवसीय राज्य स्तरीय मधुमक्खी पालन संगोष्ठी में यह विचार व्यक्त किए।

यह संगोष्ठी डॉ. यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी के कीट विज्ञान विभाग द्वारा आयोजित की गई, जिसमें हिमाचल प्रदेश के सभी जिलों से लगभग 250 किसान एवं मधुमक्खी पालक शामिल हुए।

इस अवसर पर डॉ. कुमार ने बताया कि विश्व भर में शहद के स्वास्थ्यवर्धक गुणों के प्रति बढ़ती जागरूकता के चलते मधुमक्खी कॉलोनियों की संख्या में वृद्धि हो रही है। भारत में शहद उत्पादन 2013-14 में 76 मीट्रिक टन 

से बढ़कर वर्तमान में 1.52 लाख मीट्रिक टन तक पहुँच गया है। उन्होंने कहा कि बी डेवलपमेंट कमेटी के तहत देशभर में सात शहद परीक्षण प्रयोगशालाएं स्थापित की गई है ताकि गुणवत्ता मानकों को सुनिश्चित किया जा सके।

किसानों से आग्रह करते हुए उन्होंने कहा कि वे अपनी मधुमक्खी कॉलोनियों का पंजीकरण ‘मधु क्रांति पोर्टल’ पर अवश्य करवाएँ। उन्होंने सरकार की संस्थागत व्यवस्था की जानकारी देते हुए बताया कि किसान उत्पादक संगठन (FPOs) सामूहिक रूप से शहद का विपणन कर रहे हैं। देशभर में अब तक 59 ऐसे संगठन स्थापित किए जा चुके हैं।

शहद के विपणन से जुड़ी चुनौतियों पर चर्चा करते हुए डॉ. कुमार ने कहा कि मूल्य संवर्धित उत्पादों और उप-उत्पादों के विकास पर विशेष ध्यान देना समय की मांग है। उन्होंने कॉलोनी कोलैप्स डिसऑर्डर जैसी समस्याओं तथा रासायनिक उर्वरकों

और कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग से मधुमक्खियों की भोजन खोज, दिशा पहचान और प्रजनन क्षमता पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों के बारे में जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता बताई।

डॉ. कुमार ने कहा कि मधुमक्खी पालन में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) और मशीन लर्निंग जैसी आधुनिक तकनीकों के उपयोग से उत्पादकता और ट्रेसेब्लिटी में सुधार किया जा सकता है। उन्होंने देश में क्वीन ब्रीडिंग (रानी मधुमक्खी प्रजनन) के क्षेत्र में उपलब्ध अपार संभावनाओं की भी चर्चा की।

उन्होंने विश्वविद्यालय द्वारा औद्यानिकी एवं वानिकी शिक्षा में किए जा रहे कार्यों की सराहना करते हुए वैज्ञानिकों से आग्रह किया कि वे स्कूली छात्रों को मधुमक्खियों द्वारा प्रदान की जाने वाली पारिस्थितिक सेवाओं के प्रति जागरूक करें तथा युवाओं को ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था का हिस्सा बनने के लिए प्रेरित करें।

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. राजेश्वर सिंह चंदेल ने कहा कि हम सभी ने यह समझ लिया है कि मधुमक्खी पालन का पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने में कितना महत्वपूर्ण योगदान है। उन्होंने सिरप मिश्रित शहद के बढ़ते उपयोग पर चिंता व्यक्त करते हुए शहद की गुणवत्ता परीक्षण हेतु सुसज्जित प्रयोगशालाओं की आवश्यकता पर जोर दिया।

प्रो. चंदेल ने उत्पादन के बाद बाजार में मूल्य अस्थिरता से मधुमक्खी पालकों की रक्षा के लिए अनुसंधान की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने किसानों से सामूहिक रूप से विपणन और ब्रांडिंग के प्रयासों को आगे बढ़ाने और विश्वविद्यालय की सुविधाओं

व अनुसंधान केंद्रों से नियमित रूप से जुड़ने का आग्रह किया। उन्होंने किसानों को सलाह दी कि वे अपने क्षेत्र की परिस्थितियों के अनुरूप एपिस सेराना जैसी स्थानीय मधुमक्खी प्रजातियों का उपयोग एवं संरक्षण करें।

कृषि महाविद्यालय के डीन डॉ. मनीष शर्मा ने बताया कि मधुमक्खियां परागण के माध्यम से महत्वपूर्ण पारिस्थितिकी सेवाएं प्रदान करती हैं, जिससे पर्यावरणीय संतुलन बना रहता है। उन्होंने विश्वविद्यालय में बी.एससी. (औद्यानिकी) के छात्रों के लिए संचालित अनुभवात्मक शिक्षण कार्यक्रम की जानकारी भी दी।

कीट विज्ञान विभाग के विभाग अध्यक्ष डॉ. सुभाष वर्मा ने प्रतिभागियों का स्वागत किया और बताया कि राष्ट्रीय मधु बोर्ड परियोजना के तहत मधुमक्खी पालकों की क्षमता निर्माण प्रमुख उद्देश्य है। विश्वविद्यालय के महाविद्यालयों, कृषि विज्ञान केंद्रों और अनुसंधान केंद्रों द्वारा प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए गए हैं, जिनमें स्वयं सहायता समूहों को भी शामिल किया गया है।

कार्यक्रम के दौरान विशेषज्ञों ने शहद उत्पादन एवं परागण हेतु मधुमक्खी पालन, गुणवत्तापूर्ण शहद उत्पादन एवं निर्यात, शहद की गुणवत्ता मापदंड, सरकारी पहलें तथा आधुनिक उपकरणों के उपयोग जैसे विषयों पर व्याख्यान दिए।

प्रतिभागियों को विश्वविद्यालय के एपिस मेलिफेरा और एपिस सेराना एपीयरियों, शहद प्रसंस्करण इकाई, शहद गुणवत्ता परीक्षण प्रयोगशाला और मॉडल प्राकृतिक फार्मों का भ्रमण करवाया गया।

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विश्वविद्यालय वर्तमान में हिमाचल प्रदेश में सतत उच्च-पहाड़ी मधुमक्खी पालन हेतु शहद एवं अन्य मधुमक्खी उत्पाद उत्पादन मॉडल शीर्षक परियोजना कार्यान्वित कर रहा है, जिसे राष्ट्रीय मधु बोर्ड द्वारा वित्त पोषित किया गया है।

इस परियोजना के अंतर्गत एपिस सेराना के संरक्षण हेतु मिट्टी के छत्ते विश्वविद्यालय के पाँच अनुसंधान केंद्रों में स्थापित किए गए हैं। साथ ही किसानों, बागवानों और प्रशिक्षुओं को इन छत्तों के निर्माण एवं प्रायोगिक प्रशिक्षण भी प्रदान किए जा रहे हैं।

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